Thursday, 6 July 2017

नीति आयोग

                            नीति आयोग
hi friends aaj aapko NITI yani National Institution for transforming India ke bare me batane ja raha hoon
नीति आयोग (राष्‍ट्रीय भारत परिवर्तन संस्‍थान) भारत सरकार द्वारा गठित एक नया संस्‍थान है जिसे योजना आयोग के स्‍थान पर बनाया गया है।
 1 जनवरी 2015 को इस नए संस्‍थान के संबंध में जानकारी देने वाला मंत्रिमंडल का प्रस्‍ताव जारी किया गया। यह संस्‍थान सरकार के थिंक टैंक के रूप में सेवाएं प्रदान करेगा और उसे निर्देशात्‍मक एवं नीतिगत गतिशीलता प्रदान करेगा। नीति आयोग, केन्‍द्र और राज्‍य स्‍तरों पर सरकार को नीति के प्रमुख कारकों के संबंध में प्रासंगिक महत्‍वपूर्ण एवं तकनीकी परामर्श उपलब्‍ध कराएगा। इसमें आर्थिक मोर्चे पर राष्‍ट्रीय और अंतर्राष्‍ट्रीय आयात, देश के भीतर, साथ ही साथ अन्‍य देशों की बेहतरीन पद्धतियों का प्रसार नए नीतिगत विचारों का समावेश और विशिष्‍ट विषयों पर आधारित समर्थन से संबंधित मामले शामिल होंगे। 
योजना आयोग और निति आयोग में मूलभूत अंतर है कि इससे केंद्र से राज्यों की तरफ चलने वाले एक पक्षीय नीतिगत क्रम को एक महत्वपूर्ण विकासवादी परिवर्तन के रूप में राज्यों की वास्तविक और सतत भागीदारी से बदल दिया जाएगा।
नीति आयोग ग्राम स्तर पर विश्वसनीय योजना तैयार करने के लिए तंत्र विकसित करेगा और इसे उत्तरोत्तर उच्च स्तर तक पहुंचाएगा। आयोग राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों, प्रैक्टिशनरों तथा अन्य हितधारकों के सहयोगात्मक समुदाय के जरिए ज्ञान, नवाचार, उद्यमशीलता सहायक प्रणाली बनाएगा। इसके अतिरिक्‍त आयोग कार्यक्रमों और नीतियों के क्रियान्वयन के लिए प्रौद्योगिकी उन्नयन और क्षमता निर्माण पर जोर देगा।


नीति आयोग निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए कार्य करेगा
  • राष्ट्रीय उद्देश्यों को दृष्टिगत रखते हुए राज्यों की सक्रिय भागीदारी के साथ राष्ट्रीय विकास प्राथमिकताओं, क्षेत्रों और रणनीतियों का एक साझा दृष्टिकोण विकसित करेगा। नीति आयोग का विजन बल प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों को ‘राष्ट्रीय एजेंडा’ का प्रारूप उपलब्ध कराना है।

  • सशक्त राज्य ही सशक्त राष्ट्र का निर्माण कर सकता है इस तथ्य की महत्ता को स्वीकार करते हुए राज्यों के साथ सतत आधार पर संरचनात्मक सहयोग की पहल और तंत्र के माध्यम से सहयोगपूर्ण संघवाद को बढ़ावा देगा।

  • ग्राम स्तर पर विश्वसनीय योजना तैयार करने के लिए तंत्र विकसित करेगा और इसे उत्तरोत्तर उच्च स्तर तक पहुंचाएगा।

  • आयोग यह सुनिश्चित करेगा कि जो क्षेत्र विशेष रूप से उसे सौंपे गए हैं उनकी आर्थिक कार्य नीति और नीति में राष्ट्रीय सुरक्षा के हितों को शामिल किया गया है।

  • हमारे समाज के उन वर्गों पर विशेष रूप से ध्यान देगा जिन तक आर्थिक प्रगति से उचित प्रकार से लाभान्वित ना हो पाने का जोखिम होगा।

  • रणनीतिक और दीर्घावधि के लिए नीति तथा कार्यक्रम का ढ़ांचा तैयार करेगा और पहल करेगा। साथ ही उनकी प्रगति और क्षमता की निगरानी करेगा। निगरानी और प्रतिक्रिया के आधार पर मध्यावधि संशोधन सहित नवीन सुधार किए जाएंगे।

  • महत्वपूर्ण हितधारकों तथा समान विचारधारा वाले राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय थिंक टैंक और साथ ही साथ शैक्षिक और नीति अनुसंधान संस्थानों के बीच भागीदारी को परामर्श और प्रोत्साहन देगा।

  • राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों, प्रैक्टिशनरों तथा अन्य हितधारकों के सहयोगात्मक समुदाय के जरिए ज्ञान, नवाचार, उद्यमशीलता सहायक प्रणाली बनाएगा।

  • विकास के एजेंडे के कार्यान्वयन में तेजी लाने के क्रम में अंतर-क्षेत्रीय और अंतर-विभागीय मुद्दों के समाधान के लिए एक मंच प्रदान करेगा।

  • अत्याधुनिक कला संसाधन केंद्र बनाना जो सुशासन तथा सतत और न्यायसंगत विकास की सर्वश्रेष्ठ कार्यप्रणाली पर अनुसंधान करने के साथ-साथ हितधारकों तक जानकारी पहुंचाने में भी मदद करेगा।

  • आवश्यक संसाधनों की पहचान करने सहित कार्यक्रमों और उपायों के कार्यान्वयन के सक्रिय मूल्यांकन और सक्रिय निगरानी की जाएगी। ताकि सेवाएं प्रदान करने में सफलता की संभावनाओं को प्रबल बनाया जा सके।

  • कार्यक्रमों और नीतियों के क्रियान्वयन के लिए प्रौद्योगिकी उन्नयन और क्षमता निर्माण पर जोर।

  • राष्ट्रीय विकास के एजेंडा और उपरोक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अन्य आवश्यक गतिविधियां संपादित करना।

  

संरचना 

नीति आयोग का गठन इस प्रकार होता है 
1. भारत के प्रधानमंत्री- अध्यक्ष।
2. गवर्निंग काउंसिल में राज्यों के मुख्यमंत्री और केन्द्रशासित प्रदेशों(जिन केन्द्रशासित प्रदेशो में विधानसभा है वहां के मुख्यमंत्री ) के उपराज्यपाल शामिल होंगे।
3. विशिष्ट मुद्दों और ऐसे आकस्मिक मामले, जिनका संबंध एक से अधिक राज्य या क्षेत्र से हो, को देखने के लिए क्षेत्रीय परिषद गठित की जाएंगी। ये परिषदें विशिष्ट कार्यकाल के लिए बनाई जाएंगी। भारत के प्रधानमंत्री के निर्देश पर क्षेत्रीय परिषदों की बैठक होगी और इनमें संबंधित क्षेत्र के राज्यों के मुख्यमंत्री और केन्द्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल शामिल होंगे (इनकी अध्यक्षता नीति आयोग के उपाध्यक्ष करेंगे)।
4. संबंधित कार्य क्षेत्र की जानकारी रखने वाले विशेषज्ञ और कार्यरत लोग, विशेष आमंत्रित के रूप में प्रधानमंत्री द्वारा नामित किए जाएंगे।
5. पूर्णकालिक संगठनात्मक ढांचे में (प्रधानमंत्री अध्यक्ष होने के अलावा) निम्न होंगे।
(क) उपाध्यक्षः प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त।
(ख) सदस्यः पूर्णकालिक
(ग) अंशकालिक सदस्यः अग्रणी विश्वविद्यालय शोध संस्थानों और संबंधित संस्थानों से अधिकतम दो पदेन सदस्य, अंशकालिक सदस्य बारी के आधार पर होंगे।
(घ) पदेन सदस्यः केन्द्रीय मंत्रिपरिषद से अधिकतम चार सदस्य प्रधानमंत्री द्वारा नामित होंगे। यदि बारी के आधार को प्राथमिकता दी जाती है तो यह नियुक्ति विशिष्ट कार्यकाल के लिए होंगी।
(ङ) मुख्य कार्यकारी अधिकारीः भारत सरकार के सचिव स्तर के अधिकारी को निश्चित कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त किया जाएगा।
(च) सचिवालय आवश्यकता के अनुसार

सदस्य

वर्तमान में नीति आयोग के निम्न सदस्य  है 
भारत के प्रधानमंत्री- अध्यक्ष। नरेंद्र मोदी 

उपाध्‍यक्षश्री अरविंद पणगरिया, अर्थशास्‍त्री
मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO)अमिताभ कांत
पूर्णकालिक सदस्‍यश्री बिबेक देबरॉय, अर्थशास्‍त्री
डॉ॰विजय कुमार सारस्वत, पूर्व सचिव रक्षा आरएंडडी
प्रो . रमेश चंद्र, (कृषि विशेषज्ञ )
पदेन सदस्‍यश्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मंत्री
श्री अरुण जेटली, केंद्रीय मंत्री
श्री सुरेश प्रभु, केंद्रीय मंत्री
श्री राधा मोहन सिंह, केंद्रीय मंत्री
विशेष आमंत्रितश्री नितिन गडकरी, केंद्रीय मंत्री
श्री थावर चंद गहलोत, केंद्रीय मंत्री
श्री प्रकाश जावडेकर, केंद्रीय मंत्री






Wednesday, 5 July 2017

प्राणायाम or meditation ( सहज समाधि ध्यान)

                    प्राणायाम क्या है










प्राण वह शक्ति है जो हमारे शरीर को ज़िंदा रखती है और हमारे मन को शक्ति देती है। तो 'प्राण' से हमारी जीवन शक्ति का उल्लेख होता है और 'आयाम' से नियमित करना। इसलिए प्राणायाम का अर्थ हुआ खुद की जीवन शक्ति को नियमित करना।

प्राण का विवरण 

प्राण शरीर की हज़ार सूक्ष्म ऊर्जा ग्रंथियों ( जिन्हें नाड़ि कहते है ) और ऊर्जा के केंद्रों (जिन्हें चक्र कहते है ) से गुज़रती है और शरीर के चारो ओर आभामंडल बनाती है। प्राणशक्ति की मात्रा और गुणवत्ता मनुश्या की मनोस्थिति निर्धारित करते है। अगर प्राणशक्ति बलवान है और उसका प्रवाह निरंतर और सुस्थिर है तो मन सुखी, शांत और उत्साहपूर्ण रहता है। पर ज्ञान के आभाव में और सांस पर ध्यान न रखने की वजह से मनुष्य की नाड़िया, प्राण के प्रवाह में रूकावट पैदा कर सकती है। ऐसी स्थिति मन में आशंका, चिंताएं, और डर उत्पन्न करती है। हर तकलीफ पहले सूक्ष्म में उत्पन्न होती है। इसलिए कोई बिमारी पहले प्राणशक्ति में उत्पन्न होती है ।

प्राणायाम के फायदे | 

प्राण शक्ति की मात्रा और गुणवत्ता बढ़ाता है

  • रुकी हुई नाड़िया और चक्रों को खोल देता है। आपका आभामंडल फैलता है।
  • मानव को शक्तिशाली और उत्साहपूर्ण बनाता है ।
  • मन में स्पष्टता और शरीर में अच्छी सेहत आती है ।
  • शरीर, मन, और आत्मा में तालमेल बनता है

प्राणायाम के प्रकार और उपयोग | 

प्राचीन भारत के ऋषि मुनियों ने कुछ ऐसी सांस लेने की प्रक्रियाएं ढूंढी जो शरीर और मन को तनाव से मुक्त करती है । इन प्रक्रियाओं को दिन में किसी भी वक़्त खली पेट कर सकते है । देखते है कौन सी प्रक्रिया किस परिस्थिति में उपयोगी है :
  • अगर आपका मन किसी बात को लेके विचलित हो या आपका किसी की बात से अपना मन हठा ही नहीं पा रहे हो तोह आपको भ्रामरी प्राणायाम करना चाहिए । यह प्रक्रिया उक्त रक्तचाप से पीड़ित लोगो के लिए बहुत फायेदमंद है ।
  • नाड़ियों की रुकावटों को खोलने हेतु कपालभाति प्राणायाम  उपयुक्त है । यह प्रक्रिया शरीर के विषहरण के लिए भी उपयुक्त है ।
  • अगर आप कम ऊर्जावान महसूस कर रहे है तो भस्त्रिका प्राणायाम के तीन दौर करे - आप खुद को तुरंत शक्ति से भरपूर पाएंगे ।
  • अगर आप अपने कार्य पे ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहे तो नदी शोधन प्राणायाम के नौ दौर करे और उसके पश्चात दस मिनट ध्यान करे । नाड़ी शोधन प्राणायाम दिमाग के दायिने और बाएं हिस्से में सामंजस्य बैठती है मन को केंद्रित करती है ।
ध्यान दे - प्राणायाम हमारी सुक्ष्म जीवन शक्ति से तालुक रखती है । इसलिए इनको वैसे ही करना चाहिए जैसे आपकी योग कक्षा में सिखाया गया हो । इनके साथ प्रयोग करना उचित नहीं है ।

सहज समाधि ध्यान  Sahaj Samadhi Meditation in Hindi 





वास्तविक विश्राम पाने का सरल मार्ग

हम सभी ने अपने जीवन में ध्यान की अवस्था को महसूस किया है – जिन क्षणों में हम बेहद खुश हुए हैं, या फिर जिन क्षणों में हम किसी काम में तल्लीनता से डूबे हुए हैं – ऐसे क्षणों में हमारा मन हल्का और आरामदेह प्रतीत होता है| हालांकि हम सबने ऐसे क्षणों को अनुभव किया है, लेकिन हम उन्हें अपनी मर्ज़ी से दोबारा अनुभव नहीं कर पाते हैं| सहज समाधि कार्यकम् आपको यही करना सिखाता है| यह ध्यान करने की एक अनूठी प्रक्रिया है, जिसके अभ्यास से आप तुरंत ही तनाव और परेशानियों से ऊपर उठकर, मन में असीम शांति अनुभव करते हैं और शरीर में स्फूर्ति आती है|
‘सहज’ एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है ‘प्राकृतिक’ या ‘ जो बिना किसी प्रयास के किया जाए’| ‘समाधि’ – एक गहरी, आनंदमयी और ध्यानस्थ अवस्था है| अतः ‘सहज समाधि’ वह सरल प्रक्रिया है जिसके माध्यम से हम आसानी से ध्यान कर सकते हैं|
  • ध्यान करने से सक्रिय मन शांत होता है, और स्वयं में स्थिरता आती है|
  • जब मन स्थिर होता है, तब उसके सभी तनाव छूट जाते हैं, जिससे हम स्वस्थ और केन्द्रित महसूस करते हैं|
  • सहज समाधि ध्यान कैसे करते हैं? 



  • यह मन्त्र-ध्यान है जिसमें कार्यकम् प्रतिभागियों को एक सरल ध्वनि/मंत्र सिखाई जाती है, जिसका मन में स्मरण करने पर मन स्थिर होने लगता है और भीतर जाने लगता है |जब मन और तांत्रिक तंत्र गहरे विश्राम में स्थिर होते हैं हमारे मन और विकास के मार्ग के अवरोध स्वतः खुलने लगते हैं |

सहज समाधि ध्यान के 5 लाभ 


जब एक नदी शांत होती है, तब उसमें प्रतिबिम्ब अधिक साफ़ दिखाई देता है| उसी प्रकार, जब मन शांत होता है, तभी हम अधिक स्पष्टता से अपनी बात को व्यक्त कर पाते हैं| तब किसी भी बात को देखने, समझने और व्यक्त करने की कला निखरती है| फलस्वरूप, हम अपने जीवन में अधिक स्पष्टता से संवाद कर पाते हैं|
तो कुछ मुख्य लाभ इसप्रकार के है -
  • स्पष्ट विचार
  • बढ़ी हुई ऊर्जा
  • अच्छा शारीरिक स्वास्थ्य
  • संबंधों में सुधार
  • मन में गहरी शांति

सहज समाधि ध्यान के लिए, मुझे मन्त्र की क्या आवश्यकता है ? 

संस्कृत में एक मन्त्र की परिभाषा है – ‘मनना त्रायते इति मंत्र’ | इति मन्त्र हमें पुनरावृत्ति से बचाता है| बार-बार यदि कोई विचार आये, तो वही चिंता बन जाता है| मन्त्र हमें चिंताओं से मुक्त कर देते हैं|
मन्त्र का उच्चारण मन को स्थिर करता है ।और जब मन स्थिर होता है ये स्वयं को तनावों से दूर कर वर्तमान क्षण में स्थित कर देता है । हम सिर्फ वर्तमान क्षण में सच्ची प्रसन्नता पा सकते हैं । जिन क्षणों में हम बीते हुए कल की किसी गलती के लिए शर्मिंदा नहीं है और न ही आने वाले कल की कोई चिंता होती है ।
सहज का अर्थ नैसर्गिक और समाधि का अर्थ आत्मज्ञान हमारा सच्चा स्वभाव इस मन्त्र ध्यान से सहज ही सुलभ है।
"समाधि जो ध्यान की गहरी अवस्था है उससे आपको ऊर्जा और दीर्घ काल तक रहने वाला आनंद प्राप्त होता है । यह आपको इतनी ऊचाइयों में ले जाता है कि आप की उपस्थिति मात्र प्रेम फ़ैलाने लगती है।"- गुरुदेव श्री श्री रवि शंकरजी

Tuesday, 4 July 2017

जीवन महान कैसे बने

जीवन महान कैसे बने?


जो भी जीवित है, सजग है, सचेत तथा स्वस्थ मस्तिष्क वाला है उसमें निरन्तर बढ़ने, महान बनने की इच्छा रहती है। जो व्यक्ति जिस स्थिति में है उससे ऊपर उठने का प्रयत्न करना ही वास्तविक कर्मशीलता है। उन्नति की अभिलाषा ही अधिकाँश में मनुष्य की क्रियाशीलता को उत्तेजित करती है। सामान्य से सामान्य व्यक्ति को ही क्यों न देख लिया जाय, चाहे वह रोटी दाल तक ही क्यों न सीमित हो, तब भी वह आज की अपेक्षा कल अच्छी रोटी पाने की कामना रखता है। जिसमें अपनी वर्तमान स्थिति से आगे बढ़ने की इच्छा नहीं है उसे इस प्रकार से मृत ही मानना चाहिये। अगति जड़ता का लक्षण है जीवन का नहीं। जो जीवन है, वह एक स्थान पर खड़ा ही नहीं रह सकता।
जीवन में आगे बढ़ना, प्रगति करना कोई आकस्मिक घटना नहीं है और न यह कोई स्वाभाविक प्रक्रिया है जिसके प्रवाह में कोई आगे बढ़ ही जायेगा। आगे बढ़ना, उन्नति करना एक सुनियोजित कर्तव्य है। मनुष्य अपने बल पर संघर्ष करता हुआ एक-एक कदम ही आगे बढ़ पाता है। इस भीड़ से भरी दुनिया में जहाँ लोग एक दूसरे को ढकेल कर अपना स्थान बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं वहाँ किसी लक्षित स्थान पर पहुँच सकना कोई ऐसा काम नहीं है जो यों ही बैठे बैठाये हो जायेगा! इसके लिये मनुष्य को परिश्रम, पुरुषार्थ तथा त्याग और तपस्या करनी पड़ती है। जो संघर्ष-भीरु है, स्वार्थी है, सुख-लोलुप और पलायनवादी है वह कभी भी उन्नति पथ पर अग्रसर नहीं हो सकता! उन्नति और प्रगति कर्मवीरों का ही लक्ष्य है।
संसार में, उन्नतियाँ, प्रगतियाँ तथा सफलताएँ असंख्यों प्रकार की हो सकती है! नित्य हो लोग उन्नति करते देखे जाते हैं। छोटी-सी दुकान बड़ी फर्म में बदल जाती है, मशीन मिस्त्री मिल मालिक बन जाता है। झोपड़ी में रहने वाला कोठी पा लेता है और निर्धन धनवान बन जाता है, संसार में नित्य ही यह परिवर्तन होते रहते हैं। किंतु इनको वास्तविक उन्नति नहीं कहा जा सकता। वास्तविक उन्नति वह है, जिसमें अवनति अथवा ह्रास का कोई अवसर न हो ! जिस प्रकार मनुष्य निर्धन से धनवान बनता है उसी प्रकार धनवान से निर्धन बन सकता है। कोठी बिक सकती है, मिल मिट सकती है और फर्म बन्द हो सकती है।
इस प्रकार की उन्नतियाँ साँसारिक व्यवहार तथा गतिविधियों का फल है। पुरुषार्थ तथा परिश्रम का समन्वय होने पर भी ये उन्नति को उस कोटि में नहीं आती जिनके आधार पर कोई व्यक्ति महान कहा जाता है। मनुष्य की महानता कोई सामयिक वस्तु नहीं है- कि आज वह है, कल रहेगी! पतन तथा परिवर्तन से मुक्त उच्चता ही वास्तविक उन्नति है महानता है!
इस प्रकार की महानतायें केवल वे ही व्यक्ति प्राप्त कर सकते हैं, जिनके जीवन का प्रत्येक अखण्ड क्षण परहित के लिये ही होता है। जो मनुष्य मात्र की उन्नति के लिये अपने जीवन का दाँव लगा देते हैं अपना सर्वस्व समष्टि को समर्पित कर देते हैं, वे ही उस उच्च शिखर पर पहुँचते हैं जहाँ से पतन की कोई आशंका नहीं रहती।
उच्चता के अविनत-शिखर पर पहुँचने के लिये मनुष्य को अपने जीवन को एक सुगढ़ साँचे में ढालना होता है। जो अपने जीवन को सुघड़ सुन्दर और सन्नद्ध नहीं बना सकता वह कितना ही प्रतिभावान धनवान और जनवान क्यों न हो महानता की कोटि में नहीं पहुँच सकता।
महानता के उपयुक्त साँचे में ढलने के लिये मनुष्य को सबसे पहले अपने व्यक्तित्व का विकास करना होगा। जिसका व्यक्तित्व अविकसित है, अपूर्ण है, वह बहुत कुछ आगे बढ़ जाने पर भी पीछे हट सकता है। जब तक उसे निम्न अथवा समकक्ष व्यक्तित्वों से पाला पड़ता रहेगा, तब तक तो वह बढ़ता जा सकता है, किंतु ऊँचा व्यक्तित्व सामने आते ही उसे ठिठक जाना पड़ेगा। अथवा जब वह सामान्य समूह से उठकर स्तरीय समाज में पहुँचेगा तब उसके व्यक्तित्व के दब जाने की सम्भावना रहेगी।
अस्तु, उन्नति के प्रथम सोपान-व्यक्तित्व को पूर्ण विकसित कर लेना बहुत आवश्यक है। व्यक्तित्व विकास की सबसे पहली शर्त है स्पष्ट एवं असंदिग्ध होना। मनुष्य जो कुछ है, वह साफ दिखाई देना चाहिये, जो साफ नहीं दिखाई देता वह समाज का विश्वास पात्र नहीं बन पाता। ईमानदार होते हुये भी लोग उसे गैर ईमानदार तथा महान होने पर भी निम्न समझ सकते हैं।
व्यक्तित्व की दूसरी शर्त है- एक समता। मनुष्य जो स्वरूप समाज के सामने रखता है उसका आचरण भी वैसा ही होना चाहिये। दूसरों को कितना ही सन्मार्ग दिखलाने वाला, कितना ही हित चाहने वाला यदि अपने निजी आचरण में यथावत नहीं है, तो लोग उसे छली, मतलबी अथवा स्वार्थी समझ कर, दूर भागेंगे!
व्यक्तित्व की तीसरी शर्त है-शिक्षा, स्वास्थ्य स्वच्छता, सुघड़ता, शिष्टता, सभ्यता आदि गुण। जो अशिक्षित है, रोगी है, मलीन अथवा अनगढ़ है, लोग सहज ही उसकी ओर आकर्षित नहीं होते। किसी भी फूहड़ अवस्था में फूहड़ भाषा अथवा फूहड़ शैली में कितनी ही महान एवं हितकारी बात क्यों न कही जाये कोई उसे सुनना पसंद न करेगा और यदि उसकी बात सुनी भी जायगी, तो उपहास की दृष्टि से, जिसका न कोई प्रभाव होगा और न फल।
उन्नति का दूसरा सोपान है-शक्ति! जिसका शरीर, मन और आत्मा शक्तिशाली है वह ही उन्नति पथ पर आये अवरोधों से टकरा सकता है। समाज विरोधी तत्वों से मोर्चा ले सकेगा ! जो निर्बल है, साहसहीन है वह एक छोटे से विरोध को भी सहन न कर सकेगा और शीघ्र ही मैदान छोड़कर भाग जायेगा! जो संयमी है, ज्ञानवान है, निस्पृह और निःस्वार्थ है, मन प्राण, शरीर और आत्मा उस ही के स्वस्थ एवं समर्थ हो सकते हैं। इसके विपरीत जो असंयमी है, अज्ञानी है लिप्सालु और लोलुप है, उसका निर्बल होना निश्चित है, अटल है।
उन्नति का तीसरा सोपान है- अनुशासन। जो व्यक्ति अनुशासन हीन है, अस्त-व्यस्त है, बिखरे मन, चंचल बुद्धि और कम्पित आत्मा वाला है उसके विचारों तथा कर्मों में वाँछित तेज नहीं आ पाता, जिसके अभाव में वह जन-मानस में प्रवेश कर सकने में असफल रहता है, मन जीते बिना जन-समुदाय को अनुशासित रखकर उपयुक्त दिशा में नहीं चलाया जा सकता। अनुशासनहीन व्यक्ति कितना ही शक्तिशाली, प्रतिभाशाली, प्रभावान और प्रतापवान् क्यों न हो किसी को अपने वश में नहीं रख सकता। उन्नति के इच्छुक व्यक्ति के लिये आत्मानुशासन उतना ही आवश्यक है जितनी समुद्र के लिये मर्यादा।
उन्नति का चौथा सोपान है- परिश्रम तथा पुरुषार्थ। इन दोनों गुणों से रहित व्यक्ति आलसी, प्रमादी तथा दीर्घ-सूत्री होता है। जो उन्नति-पथ में पहाड़ जैसे अवरोध हैं, उन्नति पथ के पथिकों के लिये क्या दिन क्या रात, क्या जाड़ा क्या गरमी, क्या धूप और क्या छाया समान होता है। उसके पास हर समय काम रहता है और हर समय उस काम का समय है। जो आलसी है, प्रमादी और दीर्घ-सूत्री है वह आज के काम को कल टालेगा, दूसरों पर निर्भर रहेगा। ऐसी दशा में उन्नति के शिखर पर चढ़ने का उसका स्वप्न ही रहेगा। बिना पुरुषार्थ, परिश्रम तथा तत्परता के संसार का कोई भी काम नहीं हो सकता।
उन्नति का पंचम सोपान है- निष्काम कर्म प्रभाव! निष्काम कर्म प्रभाव के बिना कोई भी व्यक्ति ईमानदारी से काम नहीं कर सकता। कभी उसे सफलता असफलता आन्दोलित करेगी, कभी निन्दा रुष्ट और प्रशंसा प्रसन्न करेगी। महान पथ पर जिस राग द्वेष से रहित होना आवश्यक है, बिना निष्काम कर्म प्रभाव तभी प्राप्त हो सकता है, जब मनुष्य अपने प्रत्येक कर्तव्य को परम प्रभु का आदेश समझकर उसकी शक्ति से ही, उसके लिये ही करता हुआ अनुभव करे! जो अपने प्रत्येक कर्म को परमात्मा का ही काम समझकर करेगा वह उसे पूर्ण दक्षता, पूर्ण मनोयोग तथा पूर्ण श्रद्धा से करेगा। जिसके फल स्वरूप उसे उस सर्व शक्तिमान से सामर्थ्य एवं शक्ति प्राप्त होती रहेगी। जिसने अपनी सीमित शक्ति को ईश्वर की परम शक्ति में तिरोधान कर दिया है वह उन्नति के किस शिखर पर पहुँच सकता है यह बतलाना कठिन है।
इस प्रकार जो व्यक्ति उन्नति के इन पाँच सोपानों पर पाँव रखता हुआ आगे बढ़ता है, वह निश्चय ही उस महानता को प्राप्त कर लेता है जिसका न ह्रास होता है और न पतन। ऐसी ही महानता के पद पर प्रतिष्ठित महापुरुषों को इतिहास लिखता है और संसार याद करता है।

योग: क्या है ?


Yoga in Hindi | योग: क्या है ? 


योग क्या है? | What is Yoga in Hindi

योग शब्द संस्कृत धातु 'युज' से निकला है, जिसका मतलब है व्यक्तिगत चेतना या आत्मा का सार्वभौमिक चेतना या रूह से मिलन। योग, भारतीय ज्ञान की पांच हजार वर्ष पुरानी शैली है । हालांकि कई लोग योग को केवल शारीरिक व्यायाम ही मानते हैं, जहाँ लोग शरीर को मोडते, मरोड़ते, खिंचते हैं और श्वास लेने के जटिल तरीके अपनाते हैं। यह वास्तव में केवल मनुष्य के मन और आत्मा की अनंत क्षमता का खुलासा करने वाले इस गहन विज्ञान के सबसे सतही पहलू हैं। योग विज्ञान में जीवन शैली का पूर्ण सार आत्मसात किया गया है|
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर कहते हैं, "योग सिर्फ व्यायाम और आसन नहीं है। यह भावनात्मक एकीकरण और रहस्यवादी तत्व का स्पर्श लिए हुए एक आध्यात्मिक ऊंचाई है, जो आपको सभी कल्पनाओं से परे की कुछएक झलक देता है।"

योग का इतिहास | History of Yoga in Hindi

योग दस हजार साल से भी अधिक समय से प्रचलन में है। मननशील परंपरा का सबसे तरौताजा उल्लेख, नासदीय सूक्त में, सबसे पुराने जीवन्त साहित्य ऋग्वेद में पाया जाता है। यह हमें फिर से सिन्धु-सरस्वती सभ्यता के दर्शन कराता है। ठीक उसी सभ्यता से, पशुपति मुहर (सिक्का) जिस पर योग मुद्रा में विराजमान एक आकृति है, जो वह उस प्राचीन काल में  योग की व्यापकता को दर्शाती है। हालांकि, प्राचीनतम उपनिषद, बृहदअरण्यक में भी, योग का हिस्सा बन चुके, विभिन्न शारीरिक अभ्यासों  का उल्लेख  मिलता है। छांदोग्य उपनिषद में प्रत्याहार का तो बृहदअरण्यक के एक स्तवन (वेद मंत्र) में  प्राणायाम के अभ्यास का  उल्लेख मिलता है। यथावत, ”योग” के वर्तमान स्वरूप के बारे में, पहली बार उल्लेख शायद कठोपनिषद में आता है, यह यजुर्वेद की कथाशाखा के अंतिम आठ वर्गों में पहली बार शामिल होता है जोकि एक मुख्य और महत्वपूर्ण उपनिषद है। योग को यहाँ भीतर (अन्तर्मन) की यात्रा या चेतना को विकसित करने की एक प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है।
प्रसिद्ध संवाद, “योग याज्ञवल्क्य” में, जोकि (बृहदअरण्यक उपनिषद में वर्णित है), जिसमें बाबा याज्ञवल्क्य और शिष्य ब्रह्मवादी गार्गी के बीच कई साँस लेने सम्बन्धी व्यायाम, शरीर की सफाई के लिए आसन और ध्यान का उल्लेख है। गार्गी द्वारा छांदोग्य उपनिषद में भी योगासन के बारे में बात की गई है।
अथर्ववेद में उल्लेखित संन्यासियों के एक समूह, वार्ता (सभा) द्वारा, शारीरिक आसन जोकि योगासन के रूप में विकसित हो सकता है पर बल दिया गया है| यहाँ तक कि संहिताओं में उल्लेखित है कि प्राचीन काल में मुनियों, महात्माओं, वार्ताओं(सभाओं) और विभिन्न साधु और संतों द्वारा कठोर शारीरिक आचरण, ध्यान व तपस्या का अभ्यास किया जाता था।
योग धीरे-धीरे एक अवधारणा के रूप में उभरा है और भगवद गीता के साथ साथ, महाभारत के शांतिपर्व में भी योग का एक विस्तृत उल्लेख मिलता है।
बीस से भी अधिक उपनिषद और योग वशिष्ठ उपलब्ध हैं, जिनमें महाभारत और भगवद गीता से भी पहले से ही, योग के बारे में, सर्वोच्च चेतना के साथ मन का मिलन होना कहा गया है।
हिंदू दर्शन के प्राचीन मूलभूत सूत्र के रूप में योग की चर्चा की गई है और शायद सबसे अलंकृत पतंजलि योगसूत्र में इसका उल्लेख किया गया है। अपने दूसरे सूत्र में पतंजलि, योग को कुछ इस रूप में परिभाषित करते हैं:
" योग: चित्त-वृत्ति निरोध: "- योग सूत्र 1.2
पतंजलि का लेखन भी अष्टांग योग के लिए आधार बन गया। जैन धर्म की पांच प्रतिज्ञा और बौद्ध धर्म के योगाचार की जडें पतंजलि योगसूत्र मे निहित हैं।
मध्यकालीन युग में हठ योग का विकास हुआ।

योग के ग्रंथ: पतंजलि योग सूत्र |Scriptures of Yoga: Patanjali Yoga Sutras

पतंजलि को योग के पिता के रूप में माना जाता है और उनके योग सूत्र पूरी तरह योग के ज्ञान के लिए समर्पित रहे हैं।
प्राचीन शास्त्र पतंजलि योग सूत्र, पर गुरुदेव के अनन्य प्रवचन, आपको योग के ज्ञान से प्रकाशमान (लाभान्वित) करते हैं, तथा योग की उत्पति और उद्देश्य के बारे में बताते हैं। योग सूत्र की इस व्याख्या का लक्ष्य योग के सिद्धांत बनाना और योग सूत्र के अभ्यास को और अधिक समझने योग्य व आसान बनाना है। इनमें ध्यान केंद्रित करने के प्रयास की पेशकश की गई है कि क्या एक ‘योग जीवन शैली’ का उपयोग योग के अंतिम लाभों का अनुभव करने के लिए किया जा सकता है|

योग के प्रकार | Types of Yog

"योग" में विभिन्न किस्म के लागू होने वाले अभ्यासों और तरीकों को शामिल किया गया है।
  • 'ज्ञान योग' या दर्शनशास्त्र
  • 'भक्ति योग' या  भक्ति-आनंद का पथ
  • 'कर्म योग' या सुखमय कर्म पथ
राजयोग, जिसे आगे आठ भागों में बांटा गया है, को अष्टांग योग भी कहते हैं। राजयोग प्रणाली का आवश्यक मर्म, इन विभिन्न तरीकों को संतुलित और एकीकृत करने के लिए, योग आसन का अभ्यास है।

श्री श्री योग | Sri Sri Yoga

श्री श्री योग जीवन का एक समग्र तरीका है जो योग के प्राचीन ज्ञान के सभी तत्वों को एकीकृत करता है, ताकि प्रार्थनापूर्वक अनुशासनमय रहते हुए, शरीर, मन और आत्मा को एक कर सकें। सरल श्रृंखला के साथ-साथ, हालांकि प्रभावी योगआसन और श्वास तकनीक में, ध्यान के आंतरिक अनुभव पर अधिक जोर दिया जाता है, क्योंकि मन के स्वास्थ्य और मानव अस्तित्व से जुडे अन्य छिपे हुए तत्वों के लिए यह जरुरी है। हम मानते हैं कि जब किसी के भीतर सद्भाव होता है; तो जीवन के माध्यम से यात्रा शांत, सुखद और अधिक परिपूर्ण हो जाती है।
श्री श्री योग कार्यक्रमों में, बुद्धि और योग की तकनीक को शुद्ध, आनन्ददायक और पूरी तरह से सिखाया जाता है। कार्यक्रमों द्वारा अपने शरीर को मजबूत करने, हमारे मन को शांत करने, अपना ध्यान दोबारा हासिल करने और आत्मविश्वास में सुधार करने हेतू संतुलन बहाल किया जाता है। यह शुरुआती और साथ ही नियमित अभ्यासियों के लिए एक पूरा पैकेज है और इसमें सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए कुछ न कुछ है।
श्री श्री योग के नियमित अभ्यास ने अभ्यासियों की जीवन शैली में उल्लेखनीय परिवर्तन किया है। उन्होंने पुरानी बीमारियों से राहत का अनुभव किया है और अपने व्यवहार में बदलाव देखा है। प्रतिभागियों ने स्वस्थ रहने, चिंता कम करके खुश रहने, सहिष्णुता की वृद्धि और सचेतता वृद्धि के बारे में अपना अनुभव बताया है।
श्री श्री योग बेहतर स्वास्थ्य का रहस्य और खुशी का बड़ा भाव है।

सभी के लिए योग| Yog for all

योग की सुंदरताओं में से, एक खूबी यह भी है कि बुढे या युवा, स्वस्थ (फिट) या कमजोर सभी के लिए योग का शारीरिक अभ्यास लाभप्रद है और यह सभी को उन्नति की ओर ले जाता है। उम्र के साथ साथ आपकी आसन की समझ ओर अधिक परिष्कृत होती जाती है। हम बाहरी सीध और योगासन  के तकनिकी (बनावट) पर काम करने बाद अन्दरूनी सुक्ष्मता पर अधिक कार्य करने लगते है और अंततः हम सिर्फ आसन में ही जा रहे होते हैं।
योग हमारे लिए कभी भी अनजाना नहीं रहा है। हम यह तब से कर रहे हैं जब हम एक बच्चे थे। चाहे यह "बिल्ली खिंचाव" आसन हो जो रीढ़ को मजबूत करता है या पवन-मुक्त आसन जो पाचन को बढ़ाता है, हम हमेशा शिशुओं को पूरे दिन योग के कुछ न कुछ रूप करते पाएंगे। बहुत से लोगों के लिए योग के बहुत से मायने हो सकते हैं। होते "योग के जरिये आपके जीवन की दिशा" तय करने में मदद करने के लिए दृढ़ संकल्प है!

सांस लेने की तकनीक प्राणायाम और ध्यान (Dhyaan)

सांस का नियंत्रण और विस्तार करना ही प्राणायाम है। साँस लेने की उचित तकनीकों का अभ्यास रक्त और मस्तिष्क को अधिक ऑक्सीजन देने के लिए, अंततः प्राण या महत्वपूर्ण जीवन ऊर्जा को नियंत्रित करने में मदद करता है । प्राणायाम भी विभिन्न योग आसन के साथ साथ चलता जाता है।  योग आसन और प्राणायाम का संयोग शरीर और मन के लिए, शुद्धि और आत्म अनुशासन का उच्चतम रूप माना गया है। प्राणायाम तकनीक हमें ध्यान का एक गहरा अनुभव प्राप्त करने हेतु भी तैयार करती है।

Monday, 3 July 2017

वज्रासन | Vajrasna in hindi


इस योग आसन का नाम इस आसन को करते समय बने आकार से निकलता है, हीरे का आकार या फिर वज्र का आकार, इसे वज्रासन का आकार, इसे वज्रासन का नाम देता है। वज्रासन में बैठकर आप प्राणायाम कर सकते हैं।

वज्रासन कैसे करे| How to do Vajrasana

  • घुटनों के बल खड़े हो जाएँ, और पुट्ठों को एड़ियों पर रखते हुए बैठे, पंजो को जमीन पर रखें पैरों की उँगलियाँ बाहर की ओर, पैरों के अंगूठे एक दूसरे को छूते हुए।
  • दोनों एड़ियों के बीच बनी जगह में बैठे।
  • सिर, गर्दन और रीढ़ की हड्डी को एक सीधी रेखा में रखे, हथेलियां जांघों पर, आकाश की ओर खुली हुई।
  • सांस छोड़े और पैरों को सीधा कर लें।
  • सांस छोड़े और पैरों को सीधा कर लें।
  • वज्रासन के लाभ|Benefits of Vajrasana

    • पेट के नीचे के हिस्से में रक्त संचार को बढ़ाता है जिससे पाचन में सुधार होता है।
    • भोजन के पश्चात् वज्रासन में बैठने से भोजन का पाचन अच्छा होता है।
    • अधिक वायु दोष या दर्द में आराम मिलता है।
    • पैर और जांघों की नसे मजबूत होती हैं।
    • घुटने और एड़ी के जोड़ लचीले होते हैं गठिया वात रोग की सम्भावना काम होती है।
    • वज्रासन में रीढ़ कम प्रयास से सीधी रहती है। इस आसान में प्राणायाम करना लाभकारी है और ध्यान के लिए तैयार करता है।

    सावधानियाँ|Contraindications

    • पैर के पंजो एड़ियों या घुटनो में अधिक समस्या होने पर।
    • स्लिप डिस्क की स्थिति में।
    • जिन्हे चलने फिरने में दिक्कत है वे इस आसन को बहुत सावधानी के साथ करें।
    • योग अभ्यास शरीर व् मन को अनेको स्वास्थ्यप्रद लाभ देता हैं फिरभी ये दवाओं का विकल्प नहीं हैं। यह अति महत्वपूर्ण हैं कि योग आसनों का प्रशिक्षण, योग के किसी प्रशिक्षित टीचर से लिया जाये। किसी स्वास्थ्य संबंधी समस्या के समय योग आसनों का अभ्यास डॉक्टर योग के टीचर के परामर्श के बाद ही करें।

    धनुरासन | Dhanurasana | Bow Pose


  • इस आसन का नाम उसे अपनी धनुषी आकार की वजह से मिला है| धनुरासन, पद्म साधना की श्रेणी में से एक आसन है| इसे सही तौर पर धनु-आसन के नाम से जाना जाता है|
    धनुरासन = धनुष +(आसन)

    धनुरासन करने का तरीका | How to do Dhanurasana

    1. पेट के बल लेटकर, पैरो मे नितंब जितना फासला रखें और दोनों हाथ शरीर के दोनों ओर सीधे रखें|
    2. घुटनों को मोड़ कर कमर के पास लाएँ और घुटिका को हाथों से पकड़ें|
    3. श्वास भरते हुए छाती को ज़मीन से उपर उठाएँ और पैरों को कमर की ओर खींचें|
    4. चेहरे पर मुस्कान रखते हुए सामने देखिए|
    5. श्वासोश्वास पर ध्यान रखे हुए, आसन में स्थिर रहें, अब आपका शरीर धनुष की तरह कसा हुआ हैl
    6. लम्बी गहरी श्वास लेते हुए, आसन में विश्राम करें|
    7. सावधानी बरतें आसन आपकी क्षमता के अनुसार ही करें, जरूरत से ज्यादा शरीर को ना कसें|
    8. १५-२० सैकन्ड बाद, श्वास छोड़ते हुए, पैर और छाती को धीरे धीरे ज़मीन पर वापस लाएँl घुटिका को छोड़ेते हुए विश्राम करें|

    धनुरासन के लाभ | Benefits of Dhanurasana

    1. पीठ / रीढ़ की हड्डी और पेट के स्नायु को बल प्रदान करना|
    2. जननांग संतुलित रखना|
    3. छाती, गर्दन और कंधोँ की जकड़न दूर करना|
    4. हाथ और पेट के स्नायु को पुष्टि देना|
    5. रीढ़ की हड्डी क़ो लचीला बनाना|
    6. तनाव और थकान से निजाद|
    7. मलावरोध तथा मासिक धर्म में सहजता|
    8. गुर्दे के कार्य में सुव्यवस्था|

    धनुरासन के अंतर्विरोध | Contraindications of Dhanurasana

    1. यदि आप को उच्च या निम्न रक्तदाब, हर्निया, कमर दर्द, सिर दर्द, माइग्रेन (सिर के अर्ध भाग में दर्द) , गर्दन में चोट/क्षति, या हाल ही में पेट का ऑपरेशन हुआ हो, तो आप कृपया धनुरासन ना आजमाएँ |
    2. गर्भवती महिलाएँ धनुरासन का अभ्यास ना करें|

भुजंगासन | Bhujangasana in Hindi


यह आसन फन उठाए हुएँ साँप की भाँति प्रतीत होता है| सूर्य नमस्कार और पद्म साधना की श्रेणी में से यह एक आसन है|

भुजंगासन इस तरह करें |How to do Bhujangasana

  1. ज़मीन पर पेट के बल लेट जाएँ, पादांगुली और मस्तक ज़मीन पे सीधा रखें|
  2. पैर एकदम सीधे रखें, पाँव और एड़ियों को भी एकसाथ रखें|
  3. दोनों हाथ, दोनों कंधो के बराबर नीचें रखे तथा दोनों कोहनियों को शरीर के समीप और समानान्तर रखें|
  4. दीर्घ श्वास लेते हुए, धीरे से मस्तक, फिर छाती और बाद में पेट को उठाएँl नाभि को ज़मीन पे ही रखें|
  5. अब शरीर को ऊपर उठाते हुए, दोनों हाथों का सहारा लेकर, कमर के पीछे की ओर खीचें|
  6. गौर फरमाएँ: दोनों बाजुओं पे एक समान भार बनाए रखें|
  7. सजगता से श्वास लेते हुए, रीड़ के जोड़ को धीरे धीरे और भी अधिक मोड़ते हुए दोनों हाथों को सीधा करें; गर्दन उठाते हुए ऊपर की ओर देखें|
  8. गौर फरमाएँ: क्या आपके हाथ कानों से दूर हैं? अपने कंधों को शिथिल रखेंl आवश्यकता हो तो कोहनियों को मोड़ भी सकते हैं| यथा अवकाश आप अभ्यास ज़ारी रखते हुए, कोहनियों को सीधा रखकर पीठ को और ज़्यादा वक्रता देना सीख सकते हैं|
  9. ध्यान रखें कि आप के पैर अभी तक सीधे ही हैं| हल्की मुस्कान बनाये रखें, दीर्घ श्वास लेते रहें [मुस्कुराते भुजंग]|
  10. अपनी क्षमतानुसार ही शरीर को तानें, बहुत ज़्यादा मोड़ना हानि प्रद हो सकता हैं|
  11. श्वास छोड़ते हुए प्रथमत: पेट, फिर छाती और बाद में सिर को धीरे से वापस ज़मीन ले आयें|

भुजंगासन के लाभ | Benefits of Bhujangasana

  1. कंधे और गर्दन को तनाव से मुक्त कराना|
  2. पेट के स्नायुओं को मज़बूत बनाना|
  3. संपूर्ण पीठ और कंधों को पुष्ट करना|
  4. रीढ़ की हड्डी का उपरवाला और मंझला हिस्सा ज़्यादा लचीला बनाना|
  5. थकान और तनाव से मुक्ति पाना|
  6. अस्थमा तथा अन्य श्वास प्रश्वास संबंधी रोगों के लिए अति लाभदायक (जब अस्थमा का दौरा जारी हो तो इस आसन का प्रयोग ना करें)|

भुजंगासन के अंतर्विरोध | Contraindications of the Bhujangasana

  1. गर्भवती महिलाएँ, या जिनकी पसली या कलाई में कोई दरार हो, या हाल ही में पेट का ऑपरेशन हुआ हो, जैसे के हर्निया, उन्हें यह आसन टालना होगा
  2. कारपेल टनेल सिंड्रोम के मरीज भी भुजंगासन ना करें
  3. यदि आप लंबे समय से बीमार हों या रीढ़ की हड्डी के विकार से ग्रस्त रह चुके हों तो, भुजंगासन का अभ्यास श्री श्री योग के प्रशिक्षक के निगरानी में ही करें



नीति आयोग

                             नीति आयोग hi friends aaj aapko NITI yani National Institution for transforming India ke bare me batane ...